SOIL- FACTS

प्राकृतिक चिकित्सा में मिटटी का योगदान 


पृथ्वी तत्त्व से उपचार
         

         सुप्रसिद्ध महान चिकित्सक अडोल्फ जस्ट ने अपनी पुस्तक 'RETURN TO NATURE' (प्राकृतिक जीवन की ओर ) में तो इसकी सर्वरोगहारी आरोग्य संजीवनी के रूप में महत्ता बताई गई है| मिटटी की आरोग्य शक्ति ही वन्य -जंतुओं को स्वस्थ रखती है | 

          धरती पर सोने वालों का पाचनतंत्र सबल सुद्रढ़ बना रहता है | जिनकी पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है उन्हें धरती पर सोने की सलाह दी जाती है|


मिटटी की विशेषताए
(1) मिटटी में विष आदि विजातीय द्रव्यों के शोषण का गुण है |
(2) यह आंतो में जमे पुराने कचरे को बहार निकालता है |
(3) सुजन, दर्द, फोड़े, फुंसी आदि में लाभ पहुचाती है |
(4) जलन(प्रदाह ), तनाव को दूर करती है |
(5) आंतों की अतिरिक्त गर्मी को खींचती है |
(6) शरीर को ठंडक पहुचाती है|
(7) शरीर को चुम्बकीय शक्ति मिलती है, जिससे स्फूर्ति आती है, शक्ति का संचार भी होता है |
(8) जहरीले जंतु के काटने पर उपचार के रूप में लाभ पहुँचाती है|
(9) त्वचा के रोमकूपों को खोलती है तथा रक्त का संचार तेज करती है |
(10) त्वचा को स्वस्थ-सतेज बनती है |

समीपता का लाभ 
            छोटे बालक जो प्रकृति के अधिक समीप हैं;पृथ्वी के महत्व को जानते है | वे पृथ्वी पर खेलना , भूमि पर लेटना अधिक पसंद करते हैं | पशु-पक्षियों को देखीए, वे अपनी थकन मिटने के लिए जमीन  पर लोट लगाते हैं और पृथ्वी की पोषक शक्ति से फिर ताजगी प्राप्त कर लेते है | तीर्थयात्रा, परिक्रमा, देवदर्शन के लिए नंगे पैर चलने का विधान है | तपस्वी लोग भूमि पर शयन करते थे |  एडोल्फ जस्ट लिखते है "वृक्ष में जो कम जेड करती हैं, हमारे शरीर में वही काम कुछ अंशों में हमारे पैर करते हैं | उनके द्वारा पृथ्वी हमारे अन्दर शक्ति और जीवन का संचार करती है |
             ईसा नंगे पैर चलने को महत्व देते थे |" वे स्वयं नंगे पैर चलते थे और उन्होंने  शिष्यों को आज्ञा दी थी -"तू जूतों का बोझ मत घसीट |"
             यदि मिटटी का वैज्ञानिक प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जाये , तो उसमे अनेक प्रकार के क्षार,लवण, विटामिन, खनिज, धातु, रसायन, रत्न आदि मिलेंगे | औषधीया कहाँ से आती है ? वे पृथ्वी से ह तो निकलती हैं| जो तत्त्व औषधियों में है उनके परमाणु पहले से ही मिटटी में उपस्थित हैं |

उपयोग विधि 
(1) टहलना एवं शयन --मिटटी के उपयोग द्वारा स्वस्थ्य सुधार में हमें सहायता मिल सकती है |उस लाभ से वंचित न रहा जाए | 
-स्वच्छ भूमि पर नंगे पैर टहलना चाहिए |
-जिन्हें सुविधा हो वे सोने के लिए  मुलायम जमीन पर बिस्तर लगायें |एसा न हो सके तो चारपाई को जमीन से बहुत ऊँचा न रखकर जमीन के पास रखना चाहिए |
-पहलवान लोग चाहे वो अमिर  क्यों न हो; रुई के गद्दों की अपेक्षा मुलायम मिटटी पर कसरत, व्यायाम करते हैं, ताकि मिटटी के अमूल्य गुणों का लाभ उनके शारीर को प्राप्त होते रहे |


(2) स्नानमहात्मा गाँधी मिटटी लगाकर स्नान करते थे | आजकल साबुन से स्नान करने का फेशन चल पड़ा है, परन्तु मिटटी साबुन से हजार गुना अच्छी है | साबुन में पड़ने वाला कास्टिक सोडा त्वचा में खुश्की पैदा करता है और रोमकूम्पों को बंद करता है, किन्तु मिटटी मेल को दूर करती है ; ताजगी लाती है; रोमकूपों को स्वच्छ करती है ; त्वचा को कोमल, चमकीली बनती है | मिटटी शरीर लगाकर स्नान करने का एक अच्छा उबटन सहित स्नान है |गर्मी के दिनों में उठाने वाले घमोरियाँ, फुन्सिया इससे दूर हो जाती है |


(3) बालो का धोना --तरह तरह के शेम्पू के प्रयोग के लिए आकर्षक विज्ञापनो का बाजार गरम है, परन्तु फिर बी मुल्तानी मिटटी से बाल धोने का रिवाज प्राचीनकाल से अब तक चला आज तक मोजूद है | इससे मेल दूर होता है, बाल काले, मुलायम व्  चिकने रहते है तथा मस्तिस्क में तरावट पहुँचती  है |


(4) पेट पर गीली मिटटी का प्रयोग -- बीमारियों में मिटटी का पट्टी के रूप में प्रयोग करते है | साफ स्थान की मिट्टी, कूड़ा कंकड़ रहित चिकनी मिटटी चिकित्सा के लिए अच्छी होती है | मिट्टी खोदकर तथा चलनी में छानकर धुप में अच्छी तरह सुखाए; जिससे हानिकारक सुक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते है | जब मिटटी की पट्टी का उपचार लेना हो, तब 8-10 घंटे पूर्व उबला गाम पानी तैयार करें तथा जिस पत्र में मिटटी गीली करनी हो उसमे मिटटी पहले डाल दे तथा खौलता गरम पानी ऊपर से इतना डाले की मिटटी गीली हो जाए | गीली मिटटी 8-10 घंटे बाद प्रयोग में ली जा  सकती है | गरम पानी का प्रयोजन मिटटी को जीवाणु रहित बनाने के लिए किया जाता है; अन्यथा ठन्डे पानी में भिगोकर ही प्राय: मिटटी की पट्टी बनाते है; जबकि मिटटी धुप में सुखी हुई होती है |

किन-किन रोगों में लाभप्रद 
          मिटटी को सर्वरोगहारी कहा गया है | पेट को ही सभी रोगों का जड़ माना जाता  है | अतः पेट या पेडू पर मिटटी की पट्टी रखने से विजातीय द्रव्य पेडू प्रवेश में आ जाता है, जिसे मिटटी सोख लेती है | गीली मिटटी का प्रयोग मुहाँसो में चेहरे पर, आँखों के रोग में आँखों की पलखों पर टिकिया बनाकर रखते है | कान के रोगों में कान के आस -पास , गठिया आदि में जोड़ों पर सुजन वाले स्थान पर, लू लगने पर पैरो के तलबे, मस्तश्क व् पेडू पर, चर्म रोगों में समस्त शारीर पर मिटटी का लेप लगया जाता है |

सुचनाए  

  •  एक बार प्रयोग में ली गई मिट्टी को दोबारा प्रयोग में न ले |
  •  आप जहा रहते है,आस-पास जिस रंग की मिटटी हो उसी का प्रयोग कर सकते है|
  •  ध्यान रहे मिटटी प्रदूषित न हो तथा जमीं के 1-2 फुट अन्दर की मिटटी ही प्रयोग में ले |
  •  रोगी का शारीर ठंडक सहने योग्य नहीं हो तथा रोगी अत्यधिक कमजोर हो तो ठंढी  मिटटी की पट्टी नहीं दे |
  • मलेरिया की चढ़ती अवस्था में जब रोगी को ठंढ लग रही हो तथा निमोनिया, दिल या  दमा के दौरे  में मिटटी की पट्टी न दे |
  • मिटटी की पट्टी 30 से 45 मिनट तक लाभ देती है , तत्पश्चात शारीर के तापमान से गरम होने लगती है | अतः आधे घंटे बाद हटा लेना चाहिए |
  • उपचार लेने के समय पेट खली होना चाहिए | भोजन कर लिया हो तो 4-5 घंटे बाद  ही उपचार दिया जाता है |
  •  उपचार लेने के बाद एनिमा द्वारा कोष्ट साफ कर लेना अच्छा है |
  •  पेट के निचे का भाग पेडू प्रदेश कहलाता है | मिटटी की पट्टी पेट और पेडू दोनों के मध्य नाभि पर राखी जाती है; जिससे पेट एवं पेडू प्रदेश के अंग- अवयवों को पूरा  लाभ मिल सके |











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